बिहार विधानसभा चुनाव २०२० के पहले चरण के लिए २८ अक्टूबर को वोटिंग होगी। चुनाव आयोग पहले चरण के मतदान के लिए अधिसूचना जारी कर दी और पहले चरण की ७१ सीटों के लिए नामांकन की र्पक्रिया भी शुरू हो गई लेकिन सीट बंटवारे को लेकर सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी दलों के महागठबंधन में अब तक कोई समझौता नहीं हो सका है। ऐसे में नामांकन शुरू होने के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके उम्मीदवारों में बेचैनी देखी जा रही है। महागठबंधन और एनडीए दोनों ही जल्द ही सीट बंटवारे की घोषणा की बात कर रहे हैं। जाहिर है कि कि सारा चुनाव पर है और किहार की जनता बाढ़ से परे ाान है। किसानों की फसल डूब गई है इस बारे में राजनीति को कोई चिंता नहीं है।
यहां स्पष्ट कर दें कि एनडीए का अंग होते हुए भी जेडीयू जिस तरह केंर्द सरकार में भागीदार नहीं है, उसी तरह एलजेपी भी बिहार सरकार में साझीदार नहीं है। यह स्थिति एनडीए के इन तीनों दलों में अंदरूनी दूरी या दरार की झलक कभी-कभी दिखा देती है- दूसरी बात, कि केंर्द में बुलंद लेकिन बिहार में मंद पड़ी बीजेपी ‘नीतीश कुमार की पिछलग्गू’ वाली पीड़ा से मुक्ति तो चाहती है, पर खुलकर बोल नहीं पाती है। रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को पहले से ही आशंका रही है कि सीटों के बंटवारे के समय जेडीयू- नेतृत्व बड़ा हिस्सा हथियाने के लिए उसे हाशिये पर सरकाना चाहेगा। ऐसे में बीजेपी को अपने हिस्से में कटौती कर के एलजेपी को साथ जोड़े रखने के लिए विवश होना होगा।
एक तरफ जहां सीटों के बंटवारे को लेकर दिल्ली से लेकर बिहार लगातार बैठके हो रही हैं लेकिन फिलहाल नतीजा सिफर ही है। वहीं दूसरी तरफ बाढ़ से जूझती बिहार के किसान माननीयों से अपनी समस्या के निदान के लिए टकटकी बांधे ताक रही है। कोसी इलाके के किसान अक्सर बाढ़ के कारण परेशान होते हैं। इस बार तो देर से आई बाढ़ ने किसानों की फसलों के साथ-साथ उम्मीदों को भी डुबो दिया। मक्के की फसल बर्बाद हुई, धान की फसल डूब गई। दलहन व तिलहन फसलों की खेती को लेकर भी किसान सशंकित हैं। इनका मानना है कि इन फसलों में भी उन्हें परेशानी होगी लेकिन इन गांवों वालों की समस्या के निदान के लिए कितनी बैठकें हुई कोई नहीं बता सकता है। गरीब जनता है क्या फर्क पड़ता है, हर साल ही तो बाढ़ आती है पहले सीट पक्की हो जाए चुनाव जीत जाएं फिर देखा जाएगा।
कोसी इलाके के किसानों की मुख्य फसल धान है। जिले में ७८ हजार हेक्टेयर में धान की फसल लगती है। पश्चिम बंगाल से सटे बारसोई अनुमंडल में धान की व्यापक खेती होती है। महानंदा तटबंध खुला रहने के साथ बारिश के कहर ने धान को लील लिया है। जलजमाव की समस्या आगामी फसल को भी र्पभावित करेगी। चावल को किसान सालों भर खाने में र्पयोग में लाते हैं। इसकी बिचाली पशुओं के चारे के काम में आती है। जिले की ७० फीसद आबादी पशुपालन पर निर्भर है। धान की फसल के बर्बाद होने के कारण इस बार किसानों को पशुचारे का भी संकट झेलना होगा। अभी गेहूं का भूसा २० रुपये र्पतिकिलो तो पुआल तीन हजार रुपये र्पति हजार की दर से बिक रहा है। किसानों का कहना है कि खेतों को सूखने में अभी समय लगेगा। इस कारण दलहन और तिलहन फसलें भी र्पभावित होंगी। सरकारी स्तर पर भी किसनों मदद नहीं मिली है। मदद मिलेगी भी कैसे माननीय तो अभी चुनाव में व्यस्त हैं।
चुनावी ऐलान के बाद बिहार में बाढ़ एक बार बड़ा मुद्दा था लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष में सीटों के बंटवारे लिए हो रहे घमासान ने यह मुद्दा कहीं पीछे छोड़ दिया।
राज्य में बाढ़ सालाना उर्स की तरह आती है। तबाही मचाकर चली जाती है। डूबते-उतराते लोगों ने हर साल की तबाही के बाद फिर से रचने-बसने की कला सीख ली है। इस साल भी १३ जिले बाढ़ से र्पभावित हैं। १०५ र्पखंड़ों की सवा नौ सौ पंचायतें बाढ़ का कहर झेल रहीं हैं। बाढ़ में फंसी तकरीबन ७० लाख की आबादी में से १०० से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी है। बिहार में बाढ़ से बचाव के लिए ७० के दशक के बाद कोई ठोस काम नहीं हुआ। बाद की सरकारों ने इस दिशा में आरोप-र्पत्यारोप से आगे कुछ किया भी नहीं। सबसे आसान होता है पड़ोसी देश नेपाल के सिर आरोपों का ठीकरा फोडऩा।
जानकार बताते हैं कि सीमावर्ती क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि नेपाल चाह कर भी बारिश का पानी नहीं रोक सकता। नेपाल हिमालय की ऊंची पहाडिय़ों पर बसा है। पहाड़ों पर जब बारिश होती है तो वो नदियों के रास्ते बिहार में आकर तबाही मचाती है। नेपाल ने उस पानी को रोकने की कोशिश की तो वह खुद तबाह हो जाएगा। बिहार में बाढ़ सिर्फ नेपाल से आने वाली नदियों से नहीं आती। बिहार में गंगा नदी यूपी से आती है। आरा, छपरा, हाजीपुर, पटना, बेगूसराय, मुंगेर, लखीसराय, भागलपुर होते हुए कटिहार के बाद पश्चिम बंगाल में र्पवेश करती है। यूपी से ही आने वाली घाघरा गोपलागंज, सीवान और छपरा में कई जगहों पर बाढ़ लाती है। बिहार में बाढ़ की समस्या साल दर साल बढ़ती गई। समय-समय पर बाढ़ के मुद्दे पर नीतीश कुमार को घेरने वाले राजद भाायद यह भूल गया है कि उसके शासनकाल में भी बाढ़ से बिहार कराहता रहा है। तब भी सरकार ने आश्वासनों के के अलावा कुछ नहीं दिया था। बिहार में पिछले दस सालों में आई भयानक बाढ़ ने हजारों जिंदगियां लील लीं। राज्य के आपदा विभाग के मुताबिक बाढ़ से इस साल अब तक १०० से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। बिहार चुनाव की बिसात काफी पहले ही बिछ गई थी पोस्टर वॉर से भाुरू हुई इस चुनावी लड़ाई का नतीजा क्या होग यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन ‘‘लालू-राबड़ी शासन के पंर्दह साल बनाम नीतीश सरकार के पंर्दह साल’’ किसके ज्यादा अच्छे रहे ये भी जनता ही तय करेगी। हां इतना जरूर है कि दोनों शासनकाल के कुछ पहलू चमकदार, तो कुछ पहलू बहुत दागदार भी रहे हैं। दोनों शासनकाल में कई अच्छे काम हुए, तो कई बुरे काम भी हुए हैं।
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