ये चांद सा सुंदर चेहरा

चांद, चांद, चन्र्दमा, शशि, सोम या मून कहने को चांद के कई नाम है। अपने देश  में चांद को खूबसूरती का पर्याय माना जाता है। चांद के हर रूप का अपना-अलग ही महत्व है। दूज का चांद, चौदहवीं का चांद, शरद-पूर्णिमा का चन्र्दमा, चतुर्थी का चांद और ईद का चांद। कवियों न जाने कितनी कविताएं चांद पर लिखीं होंगीं, वहीं बॉलीवुड में भी चांद पर खूब सारे गाने लिखे गए हैं ‘चांद सी महबूबा हो मेरी’, ‘चौदहवीं का चांद हो’। वहीं अगर आप चौदहवीं के चांद का मतलब तला ा करेंगे तो पायेंगे कि इसका मतलब होता है ‘पूरा चांद’ अब बात ये आती है कि अगर चौदहवीं का चांद ही पूरा चंदा हो गया तो साइंस के नजरिए से पूरा या पूर्ण चांद ‘पूर्णिमा का चांद’ (पन्र्दहवीं का) क्या है या उसे पूर्ण चंर्दमा के अधिकार से क्यों वंचित कर दिया गया। इसका उत्तर शायद यह हो सकता है कि चौदहवीं का चांद र्पकाश में तो पूर्ण चंर्दमा के ही जैसा होता है लेकिन उसका केवल एक हिस्सा हल्का दबा होता है या यूं कहें कि चौदहवीं और पूर्णिमा के चांद में सिर्फ एक दिन का फर्क है। चूंकि साहित्य में और कविओं ने चौदहवीं के चांद को विभिन्न स्थितियों में सबसे खूबसूरत माना है इसलिए चौहदवीं का चांद ज्यादा खूबसूरत हो गया हालांकि चौदहवीं और पूर्णिमा के चांद की खूबसूरती में कोई फर्क नहीं होता है।
   चांद का टुकड़ा, चांद का कटोरा, ईद का चांद, चांद में बैठी चरखा कातती बुढिय़ा, चौदहवीं का चांद, चांद का दाग, चांद सा चेहरा जैसी अनेक उपमाएं, लोकोक्तियां, मुहावरे आदि भाुरू से ही चलन में रहे हैं। चांद ने अपनी सुंदरता, शीतलता और आकर्षण से कवियों और साहित्यकारों की लेखनी को एक बेमिसाल उपमा र्पदान की, जिसका भरपूर इस्तेमाल लेखकों ने अपनी लेखनी में किया है। अक्सर नायकों द्वारा अपनी जीवन संगिनी की तुलना चांद से की जाती रही है और तो और नायक कई बार अपनी र्पेमिका को चांद उपहार में देने का र्पतिबद्ध दिखाई पड़ा है। गीत, साहित्य और सिनेमा के अलावा चांद ने अनेक धर्मों में भी अपना स्थान बनाया है। र्पाचीन काल से इसे देवता आदि का स्थान भी र्पाप्त रहा है और पूजा-अर्चना होती रही है। 
   चांद हमें इंतजार, सब्र और आस्था की  श क्षा भी देता है अब आप कहेंगे वो कैसे तो बता दूं कि आपने अक्सर सुना होगा कि चतुर्थी के दिन चांद निकलने में इतनी देर क्यों करता है? ईद का चांद भी हमारे सब्र का इम्तहान क्यों लेता है? जब भूख से व्याकुल, करवा चौथ या किसी बड़ी चतुर्थी के चांद निकलने में इंतजार कराता है। चांद का इंतजार करने में कैसी बेसब्री होती है और कैसे-कैसे विचार आते हैं और वास्तव में उसी इंतजार में अनूठी मिठास छुपी है। हम इंसान का चांद के पीछे आकर्षित होने की वजह है 
उसकी चांदनी, उसका र्पकाश और उसकी किरणें। यह तो खैर हम सभी जानते हैं कि चंर्दमा अपने र्पकाश से र्पकाशित नहीं होता, बल्कि सूर्य के र्पकाश के परावर्तन द्वारा ही चमकता है लेकिन सबसे 
रहस्यमय हैं चंर्दउसे और खूबसूरत बना देती हैं। 
  बच्चों को चन्दा मामा की कहानियां सुनाई जाती हैं, महिलायें चंर्दमा को देखकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं और हमारे पुराणों में तो चंर्दमा को देवता का भी दर्जा दिया गया है। चांद के साथ खेलने की चाहत बचपन में हम सभी ने की होगी। आपको सूरदास की वो कविता तो याद होगी जिसमें माता य ाोदा कान्हा को थाली में पानी रख कर चांद का अक्स खेलने को देती हैं। बचपन में हम सभी की चांद पर पहुंचने की, वहां के रहस्यों को समझने की जिज्ञासा रही होगी ऐसा सिर्फ बच्चों में ही नहीं, बल्कि बड़े बुजुर्गों में भी हमेशा से रही हैं। बहुत से रहस्यों के पर्दे अब खुल चुके हैं। फिर भी शायद चंर्दमा से जुड़े बहुत सी बाते अभी हमें जानने के लिए बाकी हैं। हां एक और बात- पूर्णिमा के समय मानव में चांद का मनोवैज्ञानिक र्पभाव देखने को मिलता है। बहरहाल चांद की र्पकृति चांदनी की चादर ओढ़ एक नए और अद्भुत रूप में नजर आती है। आप भी कभी चांद को किसी पुराने फिल्मी गाने के साथ निहारें, यकीन करिए, चांद की सारी खूबसूरती  आपको दिख जाएगी।